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शरशय्या / दोसर सर्ग / भाग 11 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'

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उभय पक्ष सेनासंभार।
होमए लागल तारमतार।।55।।
कहबथि भीष्म पितामह देव।
लेल सुयोधन पहिनहि सेब।।56।।

“भोगए अन्न जकर ई देह।
तकर पक्ष हो निःसन्देह।।57।।
धर्म अपन यदि कौरव पक्ष।
भेला भीष्म चमू-अध्यक्ष।।58।।

सेना-अधिपति गत विशाल।
अग्रज भीम करथि संचाल।।59।।
महारथी अर्जुन अति धीर।
अएला रथपर समरक तीर।।60।।

पार्थसारथी के हा आन?
अपनहि राशि धएल भगवान।।61।।
“हनब पितामह हम नहि मित्र।
बुझी काज नहि एतए पवित्र“।।62।।

सुनि अर्जुन वचनहि भेल क्षुब्ध।
कहलन्हि कालक ज्ञाता बृद्ध।।63।।
गाओल गीता ज्ञानकराज।
“हनन अहाँक हएत नहि काज।।64।।
मुइले जानू सभ जन लोक।
होउ निमित्त तेज मन शोक“।।65।।