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शरशय्या / दोसर सर्ग / भाग 7 / बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर'
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चित्रांगद आ विचित्रवीर्य दुई
सत्यवतीक स्वपुत्र।
भएलन्हि जेठ पिता गादीके
धीवरतनया पुत्र।।26।।
पाबि वीरगति युद्धहिं आहत
गेला स्वर्गक धाम।
पाबथि भाग्यक वशसँ क्षत्रिय
समर प्रसर अनुपाम।।27।।
कौरब-कुलमे ग्रहक दशासँ
भेल समाँगक ह्रास।
पड़िकलाह यम अएला नेने
हाथहिं मृत्युक पाश।।28।।
विचित्रवीर्यतन प्राण पड़एल
भए गेल राज्य अन्हार।
सत्यती कानथि ओ कलपयि
शून्य भेल संसार।।29।।
वंश हेतु नहि देखि युक्ति किछु
ओ पुनि राज्यक नाश।
कएल निवेदन भीष्मक आगाँ
राखि मनहि मन आश।।30।।