Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वली मोहम्मद 'वली' }} Category:गज़ल सजन तुम सुख सेती खोलो नक़...) |
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सजन तुम सुख सेती खोलो नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता।<br> | सजन तुम सुख सेती खोलो नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता।<br> |
01:46, 28 जून 2008 के समय का अवतरण
सजन तुम सुख सेती खोलो नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता।
कि ज्यों गुल से निकसता है गुलाब आहिस्ता आहिस्ता।।
हजारों लाख खू़वाँ में सजन मेरा चले यूँ कर।
सितारों में चले ज्यों माहताब आहिस्ता आहिस्ता।।
सलोने साँवरे पीतम तेरे मोती की झलकाँ ने।
किया अवदे-पुरैय्या को खऱाब आहिस्ता आहिस्ता।।
शब्दार्थ
(गुल: गुलाब का फूल, खू़वाँ: प्रेमिकाओं, माहताब: चाँद, अवदे-पुरैय्या: तारों का समूह)