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+ | क्या तुमने उस बेला मुझे बुलाया था कनु? | ||
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− | + | प्रगाढ़ केलि-क्षणों में अपनी अंतरंग | |
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− | + | तुम्हारे इतिहास का | |
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− | + | सुनो मेरे प्यार! | |
− | + | तुम्हें मेरी ज़रूरत थी न, लो मैं सब छोड़कर आ गई हूँ | |
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− | + | कि तुम्हारी अंतरंग केलि-सखी | |
− | + | केवल तुम्हारे साँवरे तन के नशीले संगीत की | |
− | + | लय बन तक रह गई.... | |
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− | + | मैं आ गई हूँ प्रिय! | |
− | + | मेरी वेणी में अग्निपुष्प गूँथने वाली | |
− | + | तुम्हारी उँगलियाँ | |
− | + | अब इतिहास में अर्थ क्यों नहीं गूँथती? | |
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− | + | तुमने मुझे पुकारा था न! | |
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− | + | मैं पगडण्डी के कठिनतम मोड़ पर | |
− | + | तुम्हारी प्रतीक्षा में | |
− | मैं पगडण्डी के कठिनतम मोड़ पर | + | |
− | तुम्हारी प्रतीक्षा में | + | |
अडिग खड़ी हूँ, कनु मेरे! | अडिग खड़ी हूँ, कनु मेरे! | ||
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23:13, 25 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
क्या तुमने उस बेला मुझे बुलाया था कनु?
लो, मैं सब छोड़-छाड़ कर आ गयी!
इसी लिए तब
मैं तुममें बूँद की तरह विलीन नहीं हुई थी,
इसी लिए मैंने अस्वीकार कर दिया था
तुम्हारे गोलोक का
कालावधिहीन रास,
क्योंकि मुझे फिर आना था!
तुमने मुझे पुकारा था न
मैं आ गई हूँ कनु।
और जन्मांतरों की अनन्त पगडण्डी के
कठिनतम मोड़ पर खड़ी होकर
तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ।
कि, इस बार इतिहास बनाते समय
तुम अकेले ना छूट जाओ !
सुनो मेरे प्यार!
प्रगाढ़ केलि-क्षणों में अपनी अंतरंग
सखी को तुमने बाँहों में गूँथा
पर उसे इतिहास में गूँथने से हिचक क्यों गए प्रभु?
बिना मेरे कोई भी अर्थ कैसे निकल पाता
तुम्हारे इतिहास का
शब्द, शब्द, शब्द...
राधा के बिना
सब
रक्त के प्यासे
अर्थहीन शब्द!
सुनो मेरे प्यार!
तुम्हें मेरी ज़रूरत थी न, लो मैं सब छोड़कर आ गई हूँ
ताकि कोई यह न कहे
कि तुम्हारी अंतरंग केलि-सखी
केवल तुम्हारे साँवरे तन के नशीले संगीत की
लय बन तक रह गई....
मैं आ गई हूँ प्रिय!
मेरी वेणी में अग्निपुष्प गूँथने वाली
तुम्हारी उँगलियाँ
अब इतिहास में अर्थ क्यों नहीं गूँथती?
तुमने मुझे पुकारा था न!
मैं पगडण्डी के कठिनतम मोड़ पर
तुम्हारी प्रतीक्षा में
अडिग खड़ी हूँ, कनु मेरे!