"कुछ त्रिवेणियाँ / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने<br><br> | आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने<br><br> | ||
रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे<br><br> | रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे<br><br> | ||
− | २.सारा दिन बैठा,मैं हाथ में लेकर खा़ली कासा(भिक्षापात्र)<br> | + | '''२.'''<br> |
+ | सारा दिन बैठा,मैं हाथ में लेकर खा़ली कासा(भिक्षापात्र)<br> | ||
रात जो गुज़री,चांद की कौड़ी डाल गई उसमें<br><br> | रात जो गुज़री,चांद की कौड़ी डाल गई उसमें<br><br> | ||
सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।<br><br> | सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।<br><br> | ||
− | ३.सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की<br> | + | '''३.'''<br> |
+ | सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की<br> | ||
मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर<br><br> | मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर<br><br> | ||
कल का अख़बार था,बस देख लिया,रख भी दिया।<br><br> | कल का अख़बार था,बस देख लिया,रख भी दिया।<br><br> | ||
− | ४.शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर<br> | + | '''४.'''<br> |
+ | शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर<br> | ||
किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को<br><br> | किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को<br><br> | ||
तिनकों का मेरा घर है,कभी आओ तो क्या हो?<br><br> | तिनकों का मेरा घर है,कभी आओ तो क्या हो?<br><br> | ||
− | ५.ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी<br> | + | '''५.''<br> |
+ | ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी<br> | ||
ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी<br><br> | ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी<br><br> | ||
खुदा से कहिये,कभी वो भी अपने घर आयें!<br><br> | खुदा से कहिये,कभी वो भी अपने घर आयें!<br><br> | ||
− | ६.लोग मेलों में भी गुम हो कर मिले हैं बारहा<br> | + | '''६.'''<br> |
+ | लोग मेलों में भी गुम हो कर मिले हैं बारहा<br> | ||
दास्तानों के किसी दिलचस्प से इक मोड़ पर<br><br> | दास्तानों के किसी दिलचस्प से इक मोड़ पर<br><br> | ||
यूँ हमेशा के लिये भी क्या बिछड़ता है कोई?<br><br> | यूँ हमेशा के लिये भी क्या बिछड़ता है कोई?<br><br> | ||
− | ७.आप की खा़तिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ<br> | + | '''७.'''<br> |
+ | आप की खा़तिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ<br> | ||
क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के!<br><br> | क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के!<br><br> | ||
चाँद चुभ जायेगा उंगली में तो खू़न आ जायेगा<br><br> | चाँद चुभ जायेगा उंगली में तो खू़न आ जायेगा<br><br> | ||
− | ८.पौ फूटी है और किरणों से काँच बजे हैं<br> | + | '''८.'''<br> |
+ | पौ फूटी है और किरणों से काँच बजे हैं<br> | ||
घर जाने का वक़्त हुआ है,पाँच बजे हैं<br><br> | घर जाने का वक़्त हुआ है,पाँच बजे हैं<br><br> | ||
सारी शब घड़ियाल ने चौकीदारी की है!<br><br> | सारी शब घड़ियाल ने चौकीदारी की है!<br><br> | ||
− | ९.बे लगाम उड़ती हैं कुछ ख़्वाहिशें ऐसे दिल में<br> | + | '''९.'''<br> |
+ | बे लगाम उड़ती हैं कुछ ख़्वाहिशें ऐसे दिल में<br> | ||
‘मेक्सीकन’ फ़िल्मों में कुछ दौड़ते घोड़े जैसे।<br><br> | ‘मेक्सीकन’ फ़िल्मों में कुछ दौड़ते घोड़े जैसे।<br><br> | ||
थान पर बाँधी नहीं जातीं सभी ख़्वाहिशें मुझ से।<br><br> | थान पर बाँधी नहीं जातीं सभी ख़्वाहिशें मुझ से।<br><br> | ||
− | १०.तमाम सफ़हे किताबों के फड़फडा़ने लगे<br> | + | '''१०.'''<br> |
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हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में!<br><br> | हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में!<br><br> | ||
कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!!<br><br> | कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!!<br><br> | ||
− | ११.कभी कभी बाजा़र में यूँ भी हो जाता है<br> | + | '''११.'''<br> |
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क़ीमत ठीक थी,जेब में इतने दाम नहीं थे<br><br> | क़ीमत ठीक थी,जेब में इतने दाम नहीं थे<br><br> | ||
ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था।<br><br> | ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था।<br><br> | ||
− | १२. वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर इक दिन<br> | + | '''१२.'''<br> |
+ | वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर इक दिन<br> | ||
जो मुड़ के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ न था<br><br> | जो मुड़ के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ न था<br><br> | ||
फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं।<br><br> | फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं।<br><br> | ||
− | १३.वह जिस साँस का रिश्ता बंधा हुआ था मेरा<br> | + | '''१३.'''<br> |
+ | वह जिस साँस का रिश्ता बंधा हुआ था मेरा<br> | ||
दबा के दाँत तले साँस काट दी उसने<br><br> | दबा के दाँत तले साँस काट दी उसने<br><br> | ||
कटी पतंग का मांझा मुहल्ले भर में लुटा!<br><br> | कटी पतंग का मांझा मुहल्ले भर में लुटा!<br><br> | ||
− | १४. कुछ मेरे यार थे रहते थे मेरे साथ हमेशा<br> | + | '''१४.'''<br> |
+ | कुछ मेरे यार थे रहते थे मेरे साथ हमेशा<br> | ||
कोई साथ आया था,उन्हें ले गया,फिर नहीं लौटे<br><br> | कोई साथ आया था,उन्हें ले गया,फिर नहीं लौटे<br><br> | ||
शेल्फ़ से निकली किताबों की जगह ख़ाली पड़ी है!<br><br> | शेल्फ़ से निकली किताबों की जगह ख़ाली पड़ी है!<br><br> | ||
− | १५.इतनी लम्बी अंगड़ाई ली लड़की ने<br> | + | '''१५.'''<br> |
+ | इतनी लम्बी अंगड़ाई ली लड़की ने<br> | ||
शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा<br><br> | शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा<br><br> | ||
छाले जैसा चांद पडा़ है उंगली पर!<br><br> | छाले जैसा चांद पडा़ है उंगली पर!<br><br> | ||
− | १६. बुड़ बुड़ करते लफ़्ज़ों को चिमटी से पकड़ो<br> | + | '''१६.'''<br> |
+ | बुड़ बुड़ करते लफ़्ज़ों को चिमटी से पकड़ो<br> | ||
फेंको और मसल दो पैर की ऐड़ी से ।<br><br> | फेंको और मसल दो पैर की ऐड़ी से ।<br><br> | ||
अफ़वाहों को खूँ पीने की आदत है।<br><br> | अफ़वाहों को खूँ पीने की आदत है।<br><br> | ||
− | १७.चूड़ी के टुकड़े थे,पैर में चुभते ही खूँ बह निकला<br> | + | '''१७.'''<br> |
+ | चूड़ी के टुकड़े थे,पैर में चुभते ही खूँ बह निकला<br> | ||
नंगे पाँव खेल रहा था,लड़का अपने आँगन में<br><br> | नंगे पाँव खेल रहा था,लड़का अपने आँगन में<br><br> | ||
बाप ने कल दारू पी के माँ की बाँह मरोड़ी थी!<br><br> | बाप ने कल दारू पी के माँ की बाँह मरोड़ी थी!<br><br> | ||
− | १८.चाँद के माथे पर बचपन की चोट के दाग़ नज़र आते हैं<br> | + | '''१८.'''<br> |
+ | चाँद के माथे पर बचपन की चोट के दाग़ नज़र आते हैं<br> | ||
रोड़े, पत्थर और गु़ल्लों से दिन भर खेला करता था<br><br> | रोड़े, पत्थर और गु़ल्लों से दिन भर खेला करता था<br><br> | ||
बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं!<br><br> | बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं!<br><br> | ||
− | १९.कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं<br> | + | '''१९.'''<br> |
+ | कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं<br> | ||
आँख के शीशे मेरे चुटख़े हुये हैं कब से <br><br> | आँख के शीशे मेरे चुटख़े हुये हैं कब से <br><br> | ||
टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले हैं मुझ को!<br><br> | टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले हैं मुझ को!<br><br> | ||
− | २०.कोने वाली सीट पे अब दो और ही कोई बैठते हैं<br> | + | '''२०.'''<br> |
+ | कोने वाली सीट पे अब दो और ही कोई बैठते हैं<br> | ||
पिछले चन्द महीनों से अब वो भी लड़ते रहते हैं<br><br> | पिछले चन्द महीनों से अब वो भी लड़ते रहते हैं<br><br> | ||
क्लर्क हैं दोनों,लगता है अब शादी करने वाले हैं<br><br> | क्लर्क हैं दोनों,लगता है अब शादी करने वाले हैं<br><br> | ||
− | २१. कुछ इस तरह ख़्याल तेरा जल उठा कि बस<br> | + | '''२१.'''<br> |
+ | कुछ इस तरह ख़्याल तेरा जल उठा कि बस<br> | ||
जैसे दीया-सलाई जली हो अँधेरे में<br><br> | जैसे दीया-सलाई जली हो अँधेरे में<br><br> | ||
अब फूंक भी दो,वरना ये उंगली जलाएगा!<br><br> | अब फूंक भी दो,वरना ये उंगली जलाएगा!<br><br> | ||
− | २२.कांटे वाली तार पे किसने गीले कपड़े टांगे हैं<br> | + | '''२२.'''<br> |
+ | कांटे वाली तार पे किसने गीले कपड़े टांगे हैं<br> | ||
ख़ून टपकता रहता है और नाली में बह जाता है<br><br> | ख़ून टपकता रहता है और नाली में बह जाता है<br><br> | ||
क्यों इस फौ़जी की बेवा हर रोज़ ये वर्दी धोती है।<br><br> | क्यों इस फौ़जी की बेवा हर रोज़ ये वर्दी धोती है।<br><br> | ||
− | २३. आओ ज़बानें बाँट लें अब अपनी अपनी हम<br> | + | '''२३.'''<br> |
+ | आओ ज़बानें बाँट लें अब अपनी अपनी हम<br> | ||
न तुम सुनोगे बात, ना हमको समझना है।<br><br> | न तुम सुनोगे बात, ना हमको समझना है।<br><br> | ||
दो अनपढ़ों कि कितनी मोहब्बत है अदब से<br><br> | दो अनपढ़ों कि कितनी मोहब्बत है अदब से<br><br> | ||
− | २४.नाप के वक़्त भरा जाता है ,रेत घड़ी में-<br> | + | '''२४.'''<br> |
+ | नाप के वक़्त भरा जाता है ,रेत घड़ी में-<br> | ||
इक तरफ़ खा़ली हो जबफिर से उलट देते हैं उसको<br><br> | इक तरफ़ खा़ली हो जबफिर से उलट देते हैं उसको<br><br> | ||
उम्र जब ख़त्म हो ,क्या मुझ को वो उल्टा नहीं सकता?<br><br> | उम्र जब ख़त्म हो ,क्या मुझ को वो उल्टा नहीं सकता?<br><br> | ||
− | २५. तुम्हारे होंठ बहुत खु़श्क खु़श्क रहते हैं<br> | + | '''२५.'''<br> |
+ | तुम्हारे होंठ बहुत खु़श्क खु़श्क रहते हैं<br> | ||
इन्हीं लबों पे कभी ताज़ा शे’र मिलते थे<br><br> | इन्हीं लबों पे कभी ताज़ा शे’र मिलते थे<br><br> | ||
ये तुमने होंठों पे अफसाने रख लिये कब से?<br><br> | ये तुमने होंठों पे अफसाने रख लिये कब से?<br><br> |
16:00, 23 मई 2009 के समय का अवतरण
१.
मां ने जिस चांद सी दुल्हन की दुआ दी थी मुझे
आज की रात वह फ़ुटपाथ से देखा मैंने
रात भर रोटी नज़र आया है वो चांद मुझे
२.
सारा दिन बैठा,मैं हाथ में लेकर खा़ली कासा(भिक्षापात्र)
रात जो गुज़री,चांद की कौड़ी डाल गई उसमें
सूदखो़र सूरज कल मुझसे ये भी ले जायेगा।
३.
सामने आये मेरे,देखा मुझे,बात भी की
मुस्कराए भी,पुरानी किसी पहचान की ख़ातिर
कल का अख़बार था,बस देख लिया,रख भी दिया।
४.
शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर
किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को
तिनकों का मेरा घर है,कभी आओ तो क्या हो?
'५.
ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी
ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी
खुदा से कहिये,कभी वो भी अपने घर आयें!
६.
लोग मेलों में भी गुम हो कर मिले हैं बारहा
दास्तानों के किसी दिलचस्प से इक मोड़ पर
यूँ हमेशा के लिये भी क्या बिछड़ता है कोई?
७.
आप की खा़तिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ
क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के!
चाँद चुभ जायेगा उंगली में तो खू़न आ जायेगा
८.
पौ फूटी है और किरणों से काँच बजे हैं
घर जाने का वक़्त हुआ है,पाँच बजे हैं
सारी शब घड़ियाल ने चौकीदारी की है!
९.
बे लगाम उड़ती हैं कुछ ख़्वाहिशें ऐसे दिल में
‘मेक्सीकन’ फ़िल्मों में कुछ दौड़ते घोड़े जैसे।
थान पर बाँधी नहीं जातीं सभी ख़्वाहिशें मुझ से।
१०.
तमाम सफ़हे किताबों के फड़फडा़ने लगे
हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में!
कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!!
११.
कभी कभी बाजा़र में यूँ भी हो जाता है
क़ीमत ठीक थी,जेब में इतने दाम नहीं थे
ऐसे ही इक बार मैं तुम को हार आया था।
१२.
वह मेरे साथ ही था दूर तक मगर इक दिन
जो मुड़ के देखा तो वह दोस्त मेरे साथ न था
फटी हो जेब तो कुछ सिक्के खो भी जाते हैं।
१३.
वह जिस साँस का रिश्ता बंधा हुआ था मेरा
दबा के दाँत तले साँस काट दी उसने
कटी पतंग का मांझा मुहल्ले भर में लुटा!
१४.
कुछ मेरे यार थे रहते थे मेरे साथ हमेशा
कोई साथ आया था,उन्हें ले गया,फिर नहीं लौटे
शेल्फ़ से निकली किताबों की जगह ख़ाली पड़ी है!
१५.
इतनी लम्बी अंगड़ाई ली लड़की ने
शोले जैसे सूरज पर जा हाथ लगा
छाले जैसा चांद पडा़ है उंगली पर!
१६.
बुड़ बुड़ करते लफ़्ज़ों को चिमटी से पकड़ो
फेंको और मसल दो पैर की ऐड़ी से ।
अफ़वाहों को खूँ पीने की आदत है।
१७.
चूड़ी के टुकड़े थे,पैर में चुभते ही खूँ बह निकला
नंगे पाँव खेल रहा था,लड़का अपने आँगन में
बाप ने कल दारू पी के माँ की बाँह मरोड़ी थी!
१८.
चाँद के माथे पर बचपन की चोट के दाग़ नज़र आते हैं
रोड़े, पत्थर और गु़ल्लों से दिन भर खेला करता था
बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं!
१९.
कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं
आँख के शीशे मेरे चुटख़े हुये हैं कब से
टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले हैं मुझ को!
२०.
कोने वाली सीट पे अब दो और ही कोई बैठते हैं
पिछले चन्द महीनों से अब वो भी लड़ते रहते हैं
क्लर्क हैं दोनों,लगता है अब शादी करने वाले हैं
२१.
कुछ इस तरह ख़्याल तेरा जल उठा कि बस
जैसे दीया-सलाई जली हो अँधेरे में
अब फूंक भी दो,वरना ये उंगली जलाएगा!
२२.
कांटे वाली तार पे किसने गीले कपड़े टांगे हैं
ख़ून टपकता रहता है और नाली में बह जाता है
क्यों इस फौ़जी की बेवा हर रोज़ ये वर्दी धोती है।
२३.
आओ ज़बानें बाँट लें अब अपनी अपनी हम
न तुम सुनोगे बात, ना हमको समझना है।
दो अनपढ़ों कि कितनी मोहब्बत है अदब से
२४.
नाप के वक़्त भरा जाता है ,रेत घड़ी में-
इक तरफ़ खा़ली हो जबफिर से उलट देते हैं उसको
उम्र जब ख़त्म हो ,क्या मुझ को वो उल्टा नहीं सकता?
२५.
तुम्हारे होंठ बहुत खु़श्क खु़श्क रहते हैं
इन्हीं लबों पे कभी ताज़ा शे’र मिलते थे
ये तुमने होंठों पे अफसाने रख लिये कब से?