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"कितना अच्छा होता है / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं<br>
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एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
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मछली की तरह फिसल जाते हैं ।<br><br>
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कितना अच्छा होता है<br>
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एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,<br>
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और अपने ही भीतर<br>
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दूसरे को पा लेना ।<br><br>
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11:20, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

एक-दूसरे को बिना जाने
पास-पास होना
और उस संगीत को सुनना
जो धमनियों में बजता है,
उन रंगों में नहा जाना
जो बहुत गहरे चढ़ते-उतरते हैं ।

शब्दों की खोज शुरु होते ही
हम एक-दूसरे को खोने लगते हैं
और उनके पकड़ में आते ही
एक-दूसरे के हाथों से
मछली की तरह फिसल जाते हैं ।

हर जानकारी में बहुत गहरे
ऊब का एक पतला धागा छिपा होता है,
कुछ भी ठीक से जान लेना
खुद से दुश्मनी ठान लेना है ।

कितना अच्छा होता है
एक-दूसरे के पास बैठ खुद को टटोलना,
और अपने ही भीतर
दूसरे को पा लेना ।