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"आभार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

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जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
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उस उस राही को धन्यवाद।
  
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>
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जीवन अस्थिर अनजाने ही
उस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>
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हो जाता पथ पर मेल कहीं
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सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल
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तय कर लेना कुछ खेल नहीं
  
जीवन अस्थिर अनजाने ही<br>
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दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते
हो जाता पथ पर मेल कहीं<br>
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सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल<br>
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जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
तय कर लेना कुछ खेल नहीं<br><br>
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उस उस राही को धन्यवाद।
  
दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते<br>
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साँसों पर अवलम्बित काया
सम्मुख चलता पथ का प्रमाद<br>
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जब चलते-चलते चूर हुई
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>
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दो स्नेह-शब्द मिल गए, मिली
उस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>
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नव स्फूर्ति थकावट दूर हुई
  
साँसों पर अवलम्बित काया<br>
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पथ के पहचाने छूट गए
जब चलते-चलते चूर हुई<br>
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पर साथ-साथ चल रही याद
दो स्नेह-शब्द मिल गए, मिली<br>
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जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
नव स्फूर्ति थकावट दूर हुई<br><br>
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उस उस राही को धन्यवाद।
  
पथ के पहचाने छूट गए<br>
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जो साथ न मेरा दे पाए
पर साथ-साथ चल रही याद<br>
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उनसे कब सूनी हुई डगर
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>
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मैं भी न चलूँ यदि तो भी क्या
उस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>
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राही मर लेकिन राह अमर
  
जो साथ न मेरा दे पाए<br>
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इस पथ पर वे ही चलते हैं
उनसे कब सूनी हुई डगर<br>
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जो चलने का पा गए स्वाद
मैं भी न चलूँ यदि तो भी क्या<br>
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जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
राही मर लेकिन राह अमर<br><br>
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उस उस राही को धन्यवाद।
  
इस पथ पर वे ही चलते हैं<br>
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कैसे चल पाता यदि न मिला
जो चलने का पा गए स्वाद<br>
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होता मुझको आकुल-अन्तर
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>
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कैसे चल पाता यदि मिलते
उस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>
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चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर
  
कैसे चल पाता यदि न मिला<br>
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आभारी हूँ मैं उन सबका
होता मुझको आकुल-अन्तर<br>
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दे गए व्यथा का जो प्रसाद
कैसे चल पाता यदि मिलते<br>
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जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर<br><br>
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उस उस राही को धन्यवाद।
 
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आभारी हूँ मैं उन सबका<br>
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दे गए व्यथा का जो प्रसाद<br>
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जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला<br>
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उस उस राही को धन्यवाद ।<br><br>
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09:49, 5 अगस्त 2013 के समय का अवतरण


जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद।

जीवन अस्थिर अनजाने ही
हो जाता पथ पर मेल कहीं
सीमित पग-डग, लम्बी मंज़िल
तय कर लेना कुछ खेल नहीं

दाएँ-बाएँ सुख-दुख चलते
सम्मुख चलता पथ का प्रमाद
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद।

साँसों पर अवलम्बित काया
जब चलते-चलते चूर हुई
दो स्नेह-शब्द मिल गए, मिली
नव स्फूर्ति थकावट दूर हुई

पथ के पहचाने छूट गए
पर साथ-साथ चल रही याद
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद।

जो साथ न मेरा दे पाए
उनसे कब सूनी हुई डगर
मैं भी न चलूँ यदि तो भी क्या
राही मर लेकिन राह अमर

इस पथ पर वे ही चलते हैं
जो चलने का पा गए स्वाद
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद।

कैसे चल पाता यदि न मिला
होता मुझको आकुल-अन्तर
कैसे चल पाता यदि मिलते
चिर-तृप्ति अमरता-पूर्ण प्रहर

आभारी हूँ मैं उन सबका
दे गए व्यथा का जो प्रसाद
जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद।