भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अच्छा अनुभव / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र | |
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | मेरे बहुत पास | ||
+ | मृत्यु का सुवास | ||
+ | देह पर उस का स्पर्श | ||
+ | मधुर ही कहूँगा | ||
+ | उस का स्वर कानों में | ||
+ | भीतर मगर प्राणों में | ||
+ | जीवन की लय | ||
+ | तरंगित और उद्दाम | ||
+ | किनारों में काम के बँधा | ||
+ | प्रवाह नाम का | ||
− | + | एक दृश्य सुबह का | |
+ | एक दृश्य शाम का | ||
+ | दोनों में क्षितिज पर | ||
+ | सूरज की लाली | ||
− | + | दोनों में धरती पर | |
− | + | छाया घनी और लम्बी | |
− | + | इमारतों की वृक्षों की | |
− | + | देहों की काली | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | दोनों में कतारें पंछियों की | |
− | + | चुप और चहकती हुई | |
− | दोनों में | + | दोनों में राशियाँ फूलों की |
− | + | कम-ज्यादा महकती हुई | |
− | दोनों में | + | दोनों में |
− | + | एक तरह की शान्ति | |
− | + | एक तरह का आवेग | |
− | + | आँखें बन्द प्राण खुले हुए | |
− | + | अस्पष्ट मगर धुले हुऐ | |
− | + | कितने आमन्त्रण | |
− | + | बाहर के भीतर के | |
− | + | कितने अदम्य इरादे | |
+ | कितने उलझे कितने सादे | ||
− | + | अच्छा अनुभव है | |
− | + | मृत्यु मानो | |
− | + | हाहाकार नहीं है | |
− | + | कलरव है! | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | अच्छा अनुभव है | + | |
− | मृत्यु मानो | + | |
− | हाहाकार नहीं है | + | |
− | कलरव है! | + |
08:59, 9 मई 2013 के समय का अवतरण
मेरे बहुत पास
मृत्यु का सुवास
देह पर उस का स्पर्श
मधुर ही कहूँगा
उस का स्वर कानों में
भीतर मगर प्राणों में
जीवन की लय
तरंगित और उद्दाम
किनारों में काम के बँधा
प्रवाह नाम का
एक दृश्य सुबह का
एक दृश्य शाम का
दोनों में क्षितिज पर
सूरज की लाली
दोनों में धरती पर
छाया घनी और लम्बी
इमारतों की वृक्षों की
देहों की काली
दोनों में कतारें पंछियों की
चुप और चहकती हुई
दोनों में राशियाँ फूलों की
कम-ज्यादा महकती हुई
दोनों में
एक तरह की शान्ति
एक तरह का आवेग
आँखें बन्द प्राण खुले हुए
अस्पष्ट मगर धुले हुऐ
कितने आमन्त्रण
बाहर के भीतर के
कितने अदम्य इरादे
कितने उलझे कितने सादे
अच्छा अनुभव है
मृत्यु मानो
हाहाकार नहीं है
कलरव है!