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"अच्छा अनुभव / भवानीप्रसाद मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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मेरे बहुत पास
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मृत्यु का सुवास
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देह पर उस का स्पर्श
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मधुर ही कहूँगा
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उस का स्वर कानों में
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एक दृश्य सुबह का
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आँखें बन्द प्राण खुले हुए
  
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अस्पष्ट मगर धुले हुऐ
चुप और चहकती हुई<br>
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कितने आमन्त्रण
दोनों में राशीयाँ फूलों की<br>
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बाहर के भीतर के
कम-ज्यादा महकती हुई<br><br>
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कितने अदम्य इरादे
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कितने उलझे कितने सादे
  
दोनों में<br>
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अच्छा अनुभव है
एक तरह की शान्ति<br>
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मृत्यु मानो
एक तरह का आवेग<br>
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हाहाकार नहीं है
आँखें बन्द प्राण खुले हुए<br><br>
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कलरव है!
 
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अस्पष्ट मगर धुले हुऐ<br>
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अच्छा अनुभव है<br>
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मृत्यु मानो<br>
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हाहाकार नहीं है<br>
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कलरव है!<br><br>
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08:59, 9 मई 2013 के समय का अवतरण

मेरे बहुत पास
मृत्यु का सुवास
देह पर उस का स्पर्श
मधुर ही कहूँगा
उस का स्वर कानों में
भीतर मगर प्राणों में
जीवन की लय
तरंगित और उद्दाम
किनारों में काम के बँधा
प्रवाह नाम का

एक दृश्य सुबह का
एक दृश्य शाम का
दोनों में क्षितिज पर
सूरज की लाली

दोनों में धरती पर
छाया घनी और लम्बी
इमारतों की वृक्षों की
देहों की काली

दोनों में कतारें पंछियों की
चुप और चहकती हुई
दोनों में राशियाँ फूलों की
कम-ज्यादा महकती हुई

दोनों में
एक तरह की शान्ति
एक तरह का आवेग
आँखें बन्द प्राण खुले हुए

अस्पष्ट मगर धुले हुऐ
कितने आमन्त्रण
बाहर के भीतर के
कितने अदम्य इरादे
कितने उलझे कितने सादे

अच्छा अनुभव है
मृत्यु मानो
हाहाकार नहीं है
कलरव है!