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"तुम कनक किरन / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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तुम कनक किरन के अंतराल में
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लुक छिप कर चलते हो क्यों ?
  
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नत मस्तक गवर् वहन करते
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यौवन के घन रस कन झरते
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हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
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मोन बने रहते हो क्यो?
  
तुम कनक किरन के अंतराल में<br>
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अधरों के मधुर कगारों में
लुक छिप कर चलते हो क्यों ?<br><br>
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कल कल ध्वनि की गुंजारों में
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मधु सरिता सी यह हंसी तरल
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अपनी पीते रहते हो क्यों?
  
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बेला विभ्रम की बीत चली
यौवन के घन रस कन झरते<br>
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रजनीगंधा की कली खिली
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो<br>
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अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल
मोन बने रहते हो क्यो?<br><br>
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कलित हो यों छिपते हो क्यों?
 
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कल कल ध्वनि की गुंजारों में<br>
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अपनी पीते रहते हो क्यों?<br><br>
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बेला विभ्रम की बीत चली<br>
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रजनीगंधा की कली खिली<br>
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अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल<br>
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कलित हो यों छिपते हो क्यों?<br><br>
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15:37, 19 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण

तुम कनक किरन के अंतराल में
लुक छिप कर चलते हो क्यों ?

नत मस्तक गवर् वहन करते
यौवन के घन रस कन झरते
हे लाज भरे सौंदर्य बता दो
मोन बने रहते हो क्यो?

अधरों के मधुर कगारों में
कल कल ध्वनि की गुंजारों में
मधु सरिता सी यह हंसी तरल
अपनी पीते रहते हो क्यों?

बेला विभ्रम की बीत चली
रजनीगंधा की कली खिली
अब सांध्य मलय आकुलित दुकूल
कलित हो यों छिपते हो क्यों?