"वारिस शाह से / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर
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− | आज वारिस शाह से कहती | + | आज वारिस शाह से कहती हूँ |
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अपनी कब्र में से बोलो | अपनी कब्र में से बोलो | ||
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और इश्क की किताब का | और इश्क की किताब का | ||
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कोई नया वर्क खोलो | कोई नया वर्क खोलो | ||
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पंजाब की एक बेटी रोई थी | पंजाब की एक बेटी रोई थी | ||
− | + | तूने एक लंबी दास्तान लिखी | |
− | तूने एक लंबी | + | आज लाखों बेटियाँ रो रही हैं, |
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− | आज लाखों | + | |
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वारिस शाह तुम से कह रही हैं | वारिस शाह तुम से कह रही हैं | ||
− | + | ऐ दर्दमंदों के दोस्त | |
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पंजाब की हालत देखो | पंजाब की हालत देखो | ||
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चौपाल लाशों से अटा पड़ा हैं, | चौपाल लाशों से अटा पड़ा हैं, | ||
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चिनाव लहू से भरी पड़ी है | चिनाव लहू से भरी पड़ी है | ||
− | + | किसी ने पाँचों दरिया में | |
− | किसी ने | + | |
− | + | ||
एक जहर मिला दिया है | एक जहर मिला दिया है | ||
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और यही पानी | और यही पानी | ||
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धरती को सींचने लगा है | धरती को सींचने लगा है | ||
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इस जरखेज धरती से | इस जरखेज धरती से | ||
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जहर फूट निकला है | जहर फूट निकला है | ||
− | + | देखो, सुर्खी कहाँ तक आ पहुँची | |
− | देखो, सुर्खी | + | और कहर कहाँ तक आ पहुँचा |
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− | और कहर | + | |
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फिर जहरीली हवा वन जंगलों में चलने लगी | फिर जहरीली हवा वन जंगलों में चलने लगी | ||
− | + | उसमें हर बाँस की बाँसुरी | |
− | उसमें हर | + | |
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जैसे एक नाग बना दी | जैसे एक नाग बना दी | ||
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नागों ने लोगों के होंठ डस लिये | नागों ने लोगों के होंठ डस लिये | ||
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और डंक बढ़ते चले गये | और डंक बढ़ते चले गये | ||
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और देखते देखते पंजाब के | और देखते देखते पंजाब के | ||
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सारे अंग काले और नीले पड़ गये | सारे अंग काले और नीले पड़ गये | ||
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हर गले से गीत टूट गया | हर गले से गीत टूट गया | ||
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हर चरखे का धागा छूट गया | हर चरखे का धागा छूट गया | ||
− | + | सहेलियाँ एक दूसरे से छूट गईं | |
− | + | चरखों की महफिल वीरान हो गई | |
− | + | मल्लाहों ने सारी कश्तियाँ | |
− | चरखों की महफिल | + | |
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सेज के साथ ही बहा दीं | सेज के साथ ही बहा दीं | ||
पीपलों ने सारी पेंगें | पीपलों ने सारी पेंगें | ||
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टहनियों के साथ तोड़ दीं | टहनियों के साथ तोड़ दीं | ||
− | + | जहाँ प्यार के नगमे गूँजते थे | |
− | + | वह बाँसुरी जाने कहाँ खो गई | |
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− | वह | + | |
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और रांझे के सब भाई | और रांझे के सब भाई | ||
− | + | बाँसुरी बजाना भूल गये | |
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धरती पर लहू बरसा | धरती पर लहू बरसा | ||
− | + | क़ब्रें टपकने लगीं | |
− | + | और प्रीत की शहजादियाँ | |
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− | और प्रीत की | + | |
− | + | ||
मजारों में रोने लगीं | मजारों में रोने लगीं | ||
− | + | आज सब कैदो बन गए | |
− | आज सब | + | |
− | + | ||
हुस्न इश्क के चोर | हुस्न इश्क के चोर | ||
− | + | मैं कहाँ से ढूँढ के लाऊँ | |
− | मैं | + | एक वारिस शाह और... |
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− | एक वारिस शाह और.. | + | |
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10:57, 4 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण
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आज वारिस शाह से कहती हूँ
अपनी कब्र में से बोलो
और इश्क की किताब का
कोई नया वर्क खोलो
पंजाब की एक बेटी रोई थी
तूने एक लंबी दास्तान लिखी
आज लाखों बेटियाँ रो रही हैं,
वारिस शाह तुम से कह रही हैं
ऐ दर्दमंदों के दोस्त
पंजाब की हालत देखो
चौपाल लाशों से अटा पड़ा हैं,
चिनाव लहू से भरी पड़ी है
किसी ने पाँचों दरिया में
एक जहर मिला दिया है
और यही पानी
धरती को सींचने लगा है
इस जरखेज धरती से
जहर फूट निकला है
देखो, सुर्खी कहाँ तक आ पहुँची
और कहर कहाँ तक आ पहुँचा
फिर जहरीली हवा वन जंगलों में चलने लगी
उसमें हर बाँस की बाँसुरी
जैसे एक नाग बना दी
नागों ने लोगों के होंठ डस लिये
और डंक बढ़ते चले गये
और देखते देखते पंजाब के
सारे अंग काले और नीले पड़ गये
हर गले से गीत टूट गया
हर चरखे का धागा छूट गया
सहेलियाँ एक दूसरे से छूट गईं
चरखों की महफिल वीरान हो गई
मल्लाहों ने सारी कश्तियाँ
सेज के साथ ही बहा दीं
पीपलों ने सारी पेंगें
टहनियों के साथ तोड़ दीं
जहाँ प्यार के नगमे गूँजते थे
वह बाँसुरी जाने कहाँ खो गई
और रांझे के सब भाई
बाँसुरी बजाना भूल गये
धरती पर लहू बरसा
क़ब्रें टपकने लगीं
और प्रीत की शहजादियाँ
मजारों में रोने लगीं
आज सब कैदो बन गए
हुस्न इश्क के चोर
मैं कहाँ से ढूँढ के लाऊँ
एक वारिस शाह और...