भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सेस गनेस महेस दिनेस / रसखान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार = रसखान | |
− | + | }}{{KKVID|v=BLoGuMiK7AI}} | |
− | + | ||
− | + | ||
+ | {{KKCatSavaiya}} | ||
+ | <poem> | ||
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै। | सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै। | ||
− | |||
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥ | जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥ | ||
− | + | नारद से सुक व्यास रटें, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं। | |
− | नारद से सुक व्यास | + | |
− | + | ||
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥ | ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥ | ||
+ | </poem> |
15:48, 13 नवम्बर 2021 के समय का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रटें, पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥