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बिरहानल दाह दहै तन ताप, करी बड़वानल ज्वाल रदी।
 
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घर तैं लखि चन्द्रमुखीन चली, चलि माह अन्हान कछू जु सदी।
 
घर तैं लखि चन्द्रमुखीन चली, चलि माह अन्हान कछू जु सदी।
 
 
पहिलैं ही सहेलनि तैं सबके, बरजें हसि घाइ घसौ अबदी।
 
पहिलैं ही सहेलनि तैं सबके, बरजें हसि घाइ घसौ अबदी।
 
 
परस्यौ कर जाइ न न्हाय सु कौन, री अंग लगे उफनान नदी।।
 
परस्यौ कर जाइ न न्हाय सु कौन, री अंग लगे उफनान नदी।।
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14:15, 29 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

बिरहानल दाह दहै तन ताप, करी बड़वानल ज्वाल रदी।
घर तैं लखि चन्द्रमुखीन चली, चलि माह अन्हान कछू जु सदी।
पहिलैं ही सहेलनि तैं सबके, बरजें हसि घाइ घसौ अबदी।
परस्यौ कर जाइ न न्हाय सु कौन, री अंग लगे उफनान नदी।।