Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | जीवन में कितना सूनापन | + | {{KKCatKavita}} |
− | पथ निर्जन है, एकाकी है, | + | <poem> |
− | उर में मिटने का आयोजन | + | जीवन में कितना सूनापन |
− | सामने प्रलय की झाँकी है | + | पथ निर्जन है, एकाकी है, |
+ | उर में मिटने का आयोजन | ||
+ | सामने प्रलय की झाँकी है | ||
− | वाणी में है विषाद के कण | + | वाणी में है विषाद के कण |
− | प्राणों में कुछ कौतूहल है | + | प्राणों में कुछ कौतूहल है |
− | स्मृति में कुछ बेसुध-सी कम्पन | + | स्मृति में कुछ बेसुध-सी कम्पन |
− | पग अस्थिर है, मन चंचल है | + | पग अस्थिर है, मन चंचल है |
− | यौवन में मधुर उमंगें हैं | + | यौवन में मधुर उमंगें हैं |
− | कुछ बचपन है, नादानी है | + | कुछ बचपन है, नादानी है |
− | मेरे रसहीन कपालो पर | + | मेरे रसहीन कपालो पर |
− | कुछ-कुछ पीडा का पानी है | + | कुछ-कुछ पीडा का पानी है |
− | आंखों में अमर-प्रतीक्षा ही | + | आंखों में अमर-प्रतीक्षा ही |
− | बस एक मात्र मेरा धन है | + | बस एक मात्र मेरा धन है |
− | मेरी श्वासों, निःश्वासों में | + | मेरी श्वासों, निःश्वासों में |
− | आशा का चिर आश्वासन है | + | आशा का चिर आश्वासन है |
− | मेरी सूनी डाली पर खग | + | मेरी सूनी डाली पर खग |
− | कर चुके बंद करना कलरव | + | कर चुके बंद करना कलरव |
− | जाने क्यों मुझसे रूठ गया | + | जाने क्यों मुझसे रूठ गया |
− | मेरा वह दो दिन का वैभव | + | मेरा वह दो दिन का वैभव |
− | कुछ-कुछ धुँधला सा है अतीत | + | कुछ-कुछ धुँधला सा है अतीत |
− | भावी है व्यापक अन्धकार | + | भावी है व्यापक अन्धकार |
− | उस पार कहां? वह तो केवल | + | उस पार कहां? वह तो केवल |
− | मन बहलाने का है विचार | + | मन बहलाने का है विचार |
− | आगे, पीछे, दायें, बायें | + | आगे, पीछे, दायें, बायें |
− | जल रही भूख की ज्वाला यहाँ | + | जल रही भूख की ज्वाला यहाँ |
− | तुम एक ओर, दूसरी ओर | + | तुम एक ओर, दूसरी ओर |
− | चलते फिरते कंकाल यहाँ | + | चलते फिरते कंकाल यहाँ |
− | इस ओर रूप की ज्वाला में | + | इस ओर रूप की ज्वाला में |
− | जलते अनगिनत पतंगे हैं | + | जलते अनगिनत पतंगे हैं |
− | उस ओर पेट की ज्वाला से | + | उस ओर पेट की ज्वाला से |
− | कितने नंगे भिखमंगे हैं | + | कितने नंगे भिखमंगे हैं |
− | इस ओर सजा मधु-मदिरालय | + | इस ओर सजा मधु-मदिरालय |
− | हैं रास-रंग के साज कहीं | + | हैं रास-रंग के साज कहीं |
− | उस ओर असंख्य अभागे हैं | + | उस ओर असंख्य अभागे हैं |
− | दाने तक को मुहताज कहीं | + | दाने तक को मुहताज कहीं |
− | इस ओर अतृप्ति कनखियों से | + | इस ओर अतृप्ति कनखियों से |
− | सालस है मुझे निहार रही | + | सालस है मुझे निहार रही |
− | उस ओर साधना पथ पर | + | उस ओर साधना पथ पर |
− | मानवता मुझे पुकार रही | + | मानवता मुझे पुकार रही |
− | तुमको पाने की आकांक्षा | + | तुमको पाने की आकांक्षा |
− | उनसे मिल मिटने में सुख है | + | उनसे मिल मिटने में सुख है |
− | किसको खोजूँ, किसको पाऊँ | + | किसको खोजूँ, किसको पाऊँ |
− | असमंजस है, दुस्सह दुख है | + | असमंजस है, दुस्सह दुख है |
− | बन-बनकर मिटना ही होगा | + | बन-बनकर मिटना ही होगा |
− | जब कण-कण में परिवर्तन है | + | जब कण-कण में परिवर्तन है |
− | संभव हो यहां मिलन कैसे | + | संभव हो यहां मिलन कैसे |
− | जीवन तो आत्म-विसर्जन है | + | जीवन तो आत्म-विसर्जन है |
− | सत्वर समाधि की शय्या पर | + | सत्वर समाधि की शय्या पर |
− | अपना चिर-मिलन मिला लूँगा | + | अपना चिर-मिलन मिला लूँगा |
− | जिनका कोई भी आज नहीं | + | जिनका कोई भी आज नहीं |
− | मिटकर उनको अपना | + | मिटकर उनको अपना लूँगा। |
09:33, 5 अगस्त 2013 के समय का अवतरण
जीवन में कितना सूनापन
पथ निर्जन है, एकाकी है,
उर में मिटने का आयोजन
सामने प्रलय की झाँकी है
वाणी में है विषाद के कण
प्राणों में कुछ कौतूहल है
स्मृति में कुछ बेसुध-सी कम्पन
पग अस्थिर है, मन चंचल है
यौवन में मधुर उमंगें हैं
कुछ बचपन है, नादानी है
मेरे रसहीन कपालो पर
कुछ-कुछ पीडा का पानी है
आंखों में अमर-प्रतीक्षा ही
बस एक मात्र मेरा धन है
मेरी श्वासों, निःश्वासों में
आशा का चिर आश्वासन है
मेरी सूनी डाली पर खग
कर चुके बंद करना कलरव
जाने क्यों मुझसे रूठ गया
मेरा वह दो दिन का वैभव
कुछ-कुछ धुँधला सा है अतीत
भावी है व्यापक अन्धकार
उस पार कहां? वह तो केवल
मन बहलाने का है विचार
आगे, पीछे, दायें, बायें
जल रही भूख की ज्वाला यहाँ
तुम एक ओर, दूसरी ओर
चलते फिरते कंकाल यहाँ
इस ओर रूप की ज्वाला में
जलते अनगिनत पतंगे हैं
उस ओर पेट की ज्वाला से
कितने नंगे भिखमंगे हैं
इस ओर सजा मधु-मदिरालय
हैं रास-रंग के साज कहीं
उस ओर असंख्य अभागे हैं
दाने तक को मुहताज कहीं
इस ओर अतृप्ति कनखियों से
सालस है मुझे निहार रही
उस ओर साधना पथ पर
मानवता मुझे पुकार रही
तुमको पाने की आकांक्षा
उनसे मिल मिटने में सुख है
किसको खोजूँ, किसको पाऊँ
असमंजस है, दुस्सह दुख है
बन-बनकर मिटना ही होगा
जब कण-कण में परिवर्तन है
संभव हो यहां मिलन कैसे
जीवन तो आत्म-विसर्जन है
सत्वर समाधि की शय्या पर
अपना चिर-मिलन मिला लूँगा
जिनका कोई भी आज नहीं
मिटकर उनको अपना लूँगा।