Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
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और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ | और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ | ||
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19:38, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ
हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ
होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं
जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ
साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल-सा
हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ
फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह
हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ
धुँधली सी एक याद किसी क़ब्र का दिया
और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ