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<table width=100% style="background:transparent">
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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''पहले की तरह<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अनिल जनविजय]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
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पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
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लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर
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"अरे... सब-कुछ पहले जैसा है
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सब वैसा का वैसा है...
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पहले की तरह..."
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फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
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<div style="text-align: center;">
फिर उस की आँखों में झाँका
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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</div>
  
मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
बरसों के बाद इस तरह मिले हम
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
पहले की तरह</pre>
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
<!----BOX CONTENT ENDS------>
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया