Last modified on 2 मार्च 2010, at 09:33

"हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
 
हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम,
 
हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम,
बिसद-बिबेक ज्ञान गौरव-दुलारे ह्वै ।
+
::बिसद-बिबेक ज्ञान गौरव-दुलारे ह्वै ।
 
प्रेम रतनाकर कहत इमि ऊधव सौं,
 
प्रेम रतनाकर कहत इमि ऊधव सौं,
थहरि करेजौ थामि परम दुखारे ह्वै ॥
+
::थहरि करेजौ थामि परम दुखारे ह्वै ॥
 
सीतल करत नैंकु हीतल हमारौ परि,
 
सीतल करत नैंकु हीतल हमारौ परि,
बिषम-बियोग-ताप-समन पुचारे ह्वै ।
+
::बिषम-बियोग-ताप-समन पुचारे ह्वै ।
 
गोपिनि के नैन-नीर ध्यान-नलिका ह्वै धाइ,
 
गोपिनि के नैन-नीर ध्यान-नलिका ह्वै धाइ,
दृगनि हमारै आइ छूटत फुहारे ह्वै ॥17॥
+
::दृगनि हमारै आइ छूटत फुहारे ह्वै ॥17॥
 
</poem>
 
</poem>

09:33, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

हा! हा! इन्हैं रोकन कौं टोक न लगावौ तुम,
बिसद-बिबेक ज्ञान गौरव-दुलारे ह्वै ।
प्रेम रतनाकर कहत इमि ऊधव सौं,
थहरि करेजौ थामि परम दुखारे ह्वै ॥
सीतल करत नैंकु हीतल हमारौ परि,
बिषम-बियोग-ताप-समन पुचारे ह्वै ।
गोपिनि के नैन-नीर ध्यान-नलिका ह्वै धाइ,
दृगनि हमारै आइ छूटत फुहारे ह्वै ॥17॥