Last modified on 14 जुलाई 2017, at 13:41

चिन्ता में / राकेश

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 14 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवप्रीतानन्द ओझा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झरी झकासॅ सें
पुरबा बतासँ सें
दुखिया के छूटै परान,
हाय दैवा केना केॅ मिलतै तरान!
घरॅ गुहाली के सड़लॅ परछत्ती,
होल छै फूली केॅ ढोंल
पियो परदेश
सुमिरै छी रोजे गणेश
एक्के टा घॅर द्वार, ठेनॅ भर पानी छै
जेकरा में गैय्यो के भूता भी सानी छै
खटिया पर कुबड़ी र कोकियैलॅ नानी छै
सुगनै रं हुक हुक परान
की करबै? झड़ॅ में हवा की उठलँ छै
भूखॅ सें सभ्भे
पेट दाबी सुतलॅ छै
आँखी में लोर मतुर सोचॅ में पड़लॅ छी
बिन कादॅ कोठरी में
कमरॅ तक गड़लॅ छी
छुटियोनि जाय कहीं बुढ़िया के प्रान