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जो थकी नहीं, जो बिकी नहीं / रणवीर सिंह दहिया

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एक दिन ऐसा भी जब रणभेरी बज उठी। झलकारी तो युद्धक्षेत्र में उतरने को लालायित थी ही। 10 मई 1857 को अम्बाला और मेरठ छावनी में जो भारतीय सैनिकों ने विद्रोह की शुरूआत की थी उसकी चिंगारी झांसी में पहुंची। झलकारी ने रानी से कहा- आज मेरी प्रतिज्ञा पूरी हो गई परन्तु साध रह गई। रानी बोली- प्रतिज्ञा कैसी और साध क्या। झलकारी बोली मार्च माह उन्नीसौ चौवन का झांसी अंग्रेजों ने हरियाय लय था। उस दिन मैने प्रतिज्ञा मैं अपने जेवर तार दिये थे। आज पहनने का मन हय। रानी ने कहा- जौ तो खुशी का अवसर है पैन्नों। झलकारी उदास स्वर में बोली- कों है जो पैन्नों? रानी को आश्चर्य हुआ और पूछा- क्यों? झलकारी ने जवाब दिया- बछिया घायल होने से गंगा स्नान और भोजी में सबई बिक गये। रानी दुखी हुई। सुनार बुलवाकर नये आभूषण बनवाने की बात कही। झलकारी ने मना कर दिया। 6 जून 1857 को झांसी में विद्रोह भड़क उठा। कैप्टन गोडने तथा कैप्टन डनलप 6 जून के बीच मारे गये। क्या बताया भलाः

झांसी पहोंच गई मेरठ छावनी की चिन्गारी॥
जंग मैं ज्यान झोंक दी बहादुर झांसी की झलकारी॥
पूरन कोरी और भाउ बख्शी नै जंग की संभाली कमान
कानपुर झांसी क्रान्ति फैली फिरंगी हुया घणा हैरान
झलकारी नै कसी लगाम जंग की करी पूरी तैयारी।
सन चौवन मैं फिरंगी नै झांसी का राज हथियाया था
जेवर ना पहने झलकारी नै मन मैं प्रण उठाया था
पूरा कर दिखाया था गया भाज वो अत्याचारी॥
हिम्मत देखण जोगी बताई देश तै नाता जोड़ लिया
बंगाल आर्मी बागी होगी मंुह तोपां का मोड़ दिया
काढ़ सही निचोड़ लिया घर भेदी रचैं कलाकारी।
एक बै आजाद हुई झांसी फिरंगी घणा घबराया था
हाथ पैर फूल गये थे बागिया नै राज हथियाया था
फिरंगी मार भगाया था, झांसी की सड़क ललकारी॥