जो थकी नहीं, जो बिकी नहीं / रणवीर सिंह दहिया
झलकारी वापस बस्ती में आई तो किसी को विश्वास नहीं हुआ कि अंग्रेजांें के बीच छावनी से वह जिन्दा वापिस भी लौट सकती है। उसका पति पूरन शहादत दे चुका था। उसकी चिता पर झलकारी ने फिर कसम खाई कि वह उसके मकसद को पूरा करने के लिए एक बार फिर से प्रयत्न करेगी। झलकारी के मन में तड़प थी कि जिस झांसी की रक्षा के लिए वह महिलाओ की सेना की कमाण्डर बनी, कपड़ा बुनना छोड़ उसने झांसी की देश भक्त जनता को हथियार चलाना सिखाया, वह झासी गोरों के प्रभुत्व में चली गई। उसने फिर बिखरे हुुये लोगों की सेना बनाने का काम अपने हाथ लिया। झलकारी बाई के बारे में कवि क्या बताता है भलाः
जो थकी नहीं, जो बिकी नहीं, जो रूकी नही, जो झुकी नहीं
वा थी इन्कलाब री, जुलम का जवाब री॥
हर शहीद का, हर रकीब का, हर गरीब का, हर मुरीद का
झलकारी थी ख्वाब री, खुली हुई किताब री॥
लड़ी वा इसकी खातर देश आजादी चाही उनै
झांसी का इलाका कहते कही बात निबाही उनै
मालिक मजूर के, नौकर हुजूर के, रिश्ते गरूर के, जलवे शरूर के
छोडडै फिरंगी जनाब री, उसका योहे ख्वाब री॥
बोली नहीं मानैं हुकम जुलमी हुकम रान का
जंग छिड़ लिया फिरंगी और हिन्दुस्तान का
सच की ढाल, लेकै मशाल, थे ऊँेचे ख्याल, किया था कमाल
खिला लाल गुलाब री, गोरे मारे बेहिसाव री॥
मान्या नहीं कदे फर्क, हिन्दु मुसलमान का,
निभाया रिस्ता उसनै, इन्सान तै इन्सान का
वा पढ़ती रही, वा गढ़ती रही, वा बढ़ती रही, वा चढ़ती रही
नहीं चाहया खिताब री, थी घड़ी लाजवाब री॥
भारत देश याद राखैगा, दलित झलकारी नै
फिरंगी तै पेच फंसाये, कोरी जात की नारी नै
वो घिरी नहीं, वो फिरी नहीं, वो डरी नहीं, वो मरी नहीं
रणबीर करता याद री, उसकी न्यारी सी आब री॥