भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता / कुंवर नारायण

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:50, 8 सितम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि: कुंवर नारायण

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

कविता वक्तव्य नहीं गवाह है

कभी हमारे सामने

कभी हमसे पहले

कभी हमारे बाद


कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता

भाषा में उसका बयान

जिसका पूरा मतलब है सचाई

जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान


उसे कोई हड़बड़ी नहीं

कि वह इश्तहारों की तरह चिपके

जुलूसों की तरह निकले

नारों की तरह लगे

और चुनावों की तरह जीते


वह आदमी की भाषा में

कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस