रचनाकार: वली मोहम्मद 'वली'
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दिल को लगती है दिलरुबा की अदा
जी में बस्ती है ख़ुश-अदा की अदा
गर्चे सब ख़ूबरू हैं ख़ूब वले
क़त्ल करती है मीरज़ा की अदा
हर्फ़-ए-बेजा बजा है गर बोलूँ
दुश्मन-ए-होश है पिया की अदा
नक़्श-ए-दीवार क्यूँ न हो आशिक़
हैरत-अफ़ज़ा है बेवफ़ा की अदा
गुल हुये ग़र्क-ए-आब-ए-शबनम में
देख उस साहिब-ए-हया की अदा
ऐ "वली" दर्द-ए-सर की दारू है
मुझको उस संदली क़बा की अदा