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कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 26

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( राक्षसों की चिंता )


 बड़े बिकराल भालु- बानर बिसाल बड़े,
‘तुलसी’ बड़े पहार लै पयोधि तोपिहैं।

 प्रबल प्रचंड बरिबंड बाहुदंड खंडि ।

मंडि मेदिनी को मंडलीक-नीक लोपिहैं।।

लंकदाहु देखें न उछाहु रह्यो काहुन को,
कहैं सब सचिव पुकारि पाँव रोपिहैं ।।

बाँचिहै न पाछैं तिपुरारिहू मुरारिहू के,
को है रन रारिको जौं कोसलेस कोपिहैं।1।