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यक़ीन / विमलेश त्रिपाठी

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एक उठे हुए हाथ का सपना
मरा नहीं है

जिन्दा है आदमी
अब भी थोड़ा सा चिड़ियों के मन में

बस ये दो कारण
काफी हैं
परिवर्तन की कविता के लिए।