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वही ताज है वही तख़्त है / बशीर बद्र

वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
ये वही ख़ुदा की ज़मीन है ये वही बुतों का निज़ाम है

बड़े शौक़ से मेरा घर जला कोई आँच न तुझपे आएगी
ये ज़ुबाँ किसी ने ख़रीद ली ये क़लम किसी की ग़ुलाम है

मैं ये मानता हूँ मेरे दिए तेरी आँधियोँ ने बुझा दिए
मगर इक जुगनू हवाओं में अभी रौशनी का इमाम है