Last modified on 23 जुलाई 2013, at 20:12

दयार-ए-शौक़ वहशत का अब समाँ नहीं होगा / 'महताब' हैदर नक़वी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:12, 23 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='महताब' हैदर नक़वी }} {{KKCatGhazal}} <poem> दयार-...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दयार-ए-शौक़1 वहशत का अब समाँ नहीं होगा
समन्दर के लिए अगले बरस तूफ़ाँ नहीं होगा
 
सिमटते मंज़रों में अब कोई आवज़-ए-पा2 कैसी
दरख़्तों के लिए पैग़ाम-ए- रुत इमकाँ होगा
 
बहुत मुश्किल पड़ेगी कार-ए-दुनिया से सनासाई
सफ़र जो पावँ से लिपता है अब आसाँ नहीं होगा
 
फ़िराक-ओ वस्ल की चादर पे बोसों के निशाँ होंगे
मुकद्दस3 शब की रुख़-तहरीर का उनवाँ नहीं होंगे
 
अकेला फिर रहा हूं दर्द की तारीक गलियों में
सुना करता था ये कूचा कभी वीराँ नहीं होगा

1-इच्छित जगह 2-पगध्वनि 3- पवित्र