शब्द की सत्ता की पहचान
सिर्फ़ नाद से नहीं होती.
होता है हर शब्द के पास
अपना एक प्रभामण्डल
उस प्रभामण्डल में नहाकर ही
पकड़ में आता है शब्द।
शब्द को चिमटे से पकड़-पकड़कर
कहीं फिट करना
या ढेलों की तरह
एक-दूसरे पर मारना
या कन्दुक की तरह उछालना
पहुंचना नहीं है शब्द के पास।
समूचा व्यक्तिगत होता है शब्द.
होता है शब्द जब चमकीली धूप
या मौसम की गन्ध
तब हम शब्द की सत्ता के करीब होते हैं
नहीं तो बस ताउम्र शब्दों को
गधों की तरह ढोते हैं।