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कविता अनुभव / प्रताप सहगल

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(क)
बेहतर है कविता करने से घास खोद लेना
या जोड़ लेना ईंट-गारा
घास खोदने या
ईंट-गारा जोड़ने से
दो पेट तो पलते हैं
और कविता करने से
दो आदमी ज़रूर जलते हैं
एक कहनेवाला
दूसरा सुननेवाला।

(दो)
बेहतर है कविता करने से
कुछ ठोका-ठोकी
कुछ पीटा-पूटी
कविता में शब्द होते हैं
शब्द में अर्थ
और अर्थ में दूर भीतर
कहीं घुसा होता है दर्शन
सौ आवाज़ लगा लो
पर घर-घुसरे की नाईं
बाहर नहीं निकलता
निकल भी आए बाहर
क्या करूंगा उसे सीने से चिपकाकर।
तुम मेरा पेट भर दो
मैं तुम्हारी कविताओं के शब्दों के साथ
चिपके हुए अर्थ अलग कर दूंगा।
शाल-वाल दिलवा दो
तो दर्शन भी समझा दूंगा
और कहीं जो छत डलवा दो
तो एक और दर्शन बना दूंगा
पर दोस्त! पहले कुछ करो
नहीं तो तुम्हारी कविता ही नहीं सुनूंगा
कम-से-कम अपना सिर तो नहीं धुनूंगा।

(तीन)
कविता
अब मेरे लिए
फूल नहीं
बिच्छू है
प्रतीक तेज़ डंक
और बिम्ब खुरदरा दर्पण
ऐसी कविता को पास बिठाऊं
यह आप सलाह देते हैं
दरअसल वे लोग आप-जैसे ही होते हैं
जो मुझ जैसे भले मानुस को
धोखे में मरवा देते हैं।