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पहचान / प्रताप सहगल

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अंधेरे की चादर से घिरे
इस आदमी को पहचानो
रामदीन है यह
नहीं, यह तो इब्राहिम है
यह जानी का पुराना संस्करण है
नहीं ओ नहीं
यह मनमीत सिंह है
अंधेरे की चादर से घिरा आदमी
खामोश है
वह नहीं
उसकी पेशानी पर फैली लकीरें बोलती हैं
वह नहीं
टोपी से झांकते उसके बाल बोलते हैं
वह नहीं
उसके स्वेटर के तार-तार बोलते हैं-
मुझे किसी मत से न पहचानो
मैं आदमी हूं
आदमी की परम्परा का
मुझे आदमी ही मानो।