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सात जणी का हे मां मेरी झूमका / धनपत सिंह

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सात जणी का हे मां मेरी झूमका, हेरी कोए रळ मिल झूलण जा,
झूल घली सै हे मां बाग म्हं

कोए-कोए किसे की बाट म्हं ठहर रही री
कोए तीळ सिंधारे आळी पहर रही री
जो कोए राक्खी ब्याह

छोरे हांगा लारे पींघ पै री
दो छोरी झट बैट्ठी पींघ पै री
दो रही लंगर ठा

झूंटा चड्ढ्या गगन अटाक था री
झट सासु का तोड़ा नाक था री
हेरी लंबा हाथ लफा

आम के पेड़ कै नीच्चै खड्या री
सब की नजरां एकदम आ पड्या री
उड़ै ‘धनपत सिंह’ भी था