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तस्वीर / लक्ष्मीकान्त मुकुल

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हाथी के दांत
देखे जा सकते थे चिड़ियाघरों के
अंधेरे में डूबी कंदराओं में
बहाना कुछ भी हो सकता था
कैमरे ताने अपलक खड़े थे लोग
डरी-सहमी और खिली आंखें
अवाक्!
बड़े सुलझाने में लगे थे
अतीत के खाये-पफंसे धगे
हम छान आये थे
स्कूल के जमाने की दुबकी स्मृतियां
औचक खड़े थे बच्चे
अगले युग की पुस्तकों में
उन्हें देखनी थी इन
उजले दांतों की तस्वीर।