Last modified on 29 जून 2014, at 11:53

धुन / लक्ष्मीकान्त मुकुल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:53, 29 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मीकान्त मुकुल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मटमैला अंधेरा
घेरा बनाता मौन था
पक्षियों की तड़फड़ाहट से
सूर्यग्रहण के पुराने किस्सों की ताजगी में
डूबता जा रहा था आकाश
बूंदा-बांदी की घड़ी
बेहाथ हो चली थी
कांप रही थी जौ की बालियां
पेड़ भूल रहे थे पतझड़ का मौसम
सारंगी धुन पर
कोई सुबह से ही बैठा गा रहा था
फसलों का धीमा संगीत।