चली आ रही शाम
अब डूबने को आया सूरज
सहमी हैं सीधी गलियां
कोने-कोने में
कर रहे हैं झींगुर-गान
गांव-गिरांव की नींद में
कुनमुनाते दीख रहे हैं बच्चे
मुडेरों पर उचर रहे थे कौवे
गा रहे थे खेतों के पास
कतारब लोग
कोई पराती गीत
अनसुना राग।
चली आ रही शाम
अब डूबने को आया सूरज
सहमी हैं सीधी गलियां
कोने-कोने में
कर रहे हैं झींगुर-गान
गांव-गिरांव की नींद में
कुनमुनाते दीख रहे हैं बच्चे
मुडेरों पर उचर रहे थे कौवे
गा रहे थे खेतों के पास
कतारब लोग
कोई पराती गीत
अनसुना राग।