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उगो सूरज / लक्ष्मीकान्त मुकुल

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उगो सूरज
बबूल के घने जंगल में
गदरा जाये सारे फूल
महक उठे आम की बगिया
कूकने लगे कोइलर
भैंस चराने जाते हुए
चरवाहों की टिटकारी में
सूरज उगो
भोआर होती धन की बालों में
सूखी पड़ी बहन की गोद में उगो
सूरज ऐसे उगो!
छूट जाये पिता का सिकमी खेत
निपट जाये भाइयों का झगड़ा
बच जाये बारिश में डूबता हुआ घर
मां की उदास आंखों में
छलक पड़े खुशियों के आंसू
गंगा की तराई में
कोचानो के आस-पास
गूलर के छितराये हुए पेड़ों में उगो
सूरज उगो
ताकि मनगरा जाये
अभावों से झवंराया मेरा बदन
सुबह के झुरमुटों में
खेलते हुए सूरज!
कर दो ऐसा प्रकाश
कि चढ़ते अश्लेषा
ध्नखर खेतों में
मिलने लगे हमें भी सोना।