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एक काव्य मोती |
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द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँ, भूपति जान न पावत नेरे।
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कै, भेंट को चारि न चाउर मेरे॥
-- सुदामा चरित / नरोत्तमदास -- |
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