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उन्माद / शरद कोकास

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पागल हो जाओगे तुम मेरे साथ
उसने कहा
भटकोगे आवारा बादल की तरह
बस बरस नहीं पाओगे

ताकोगे आसमान की ओर
जैसे अगले ही क्षण
उसे बाँहों में भर लोगे

लट्टू बनकर नाचते रहोगे
संवेदना की कील पर
तेज़ गति की रेल बनकर
दौड़ते रहोगे
समाज की पुरानी पटरियों पर

बोलते रहोगे
सात समन्दर पार की
न समझ में आनेवाली भाषा

फिर बैठ जाओगे चुपचाप
युद्ध के बाद थमी
बन्दूकों की मानिन्द।

-1996