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सैर / शरद कोकास

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डूबते सूरज ने
ज़िन्दगी से पूछा
मैं तो चला
तुम क्या करोगी अब

क्या चाँद से बातें करते हुए
हवा के पंखों पर सवार
बादलों की डोली में
निकलोगी सैर के लिए

अरमान अपनी जगह
अपनी जगह इच्छाएँ
बुझे हुए चूल्हे की हँसी
अपनी जगह।

-1996