कोई तयशुदा वक़्त नहीं है
उसके आने ठहरने और चले जाने का
न मौसम की तरह है वो न ख़ानाबदोश
फिर लौटकर आने का भविष्य लिए
अनिश्चितता की डाल पर बैठा है उसका वर्तमान
उसके रूप बदलने में छुपा है
यथास्थिति की धारणा बदलने का संकेत
अपने हठ मंे दुनिया को पीछे ढकेलती
पिछली पीढ़ी का अहसास
यह यूँ ही नहीं होता कि उसके आते ही
अर्थशास्त्र के नियम टूटते दिखाई देते हैं
आसमान छूने लगती हैं सस्ती वस्तुओं की कीमतें
वही कुछ मूल्यवान वस्तुएँ दो कौड़ी की होकर रह जाती हैं
मसलन बस एकरात पुरानी चादर के नयेपन में
अगली सुबह पुरानी होने का दाग़ लग जाता है
रमज़ान ईद के शीर-कोरमे से महकता कुर्ता
बकरीद के लिए बासी हो जाता है
शादी में सिलाया सूट
पहले बच्चे के जन्मदिन पर
आपकी हँसी उड़ाता नजर आता है
नाईकी दुकान पर फ्रेम में मढ़ी
विभिन्न हेयर स्टाइल की तस्वीरों से लेकर
गहनों कपड़ों के अत्याधुनिक शो रूम तक
वह अपना विजय ध्वज लहराता चलता
चादरों दीवारों रंगों की तरह ही
पुराने फैशन का घोषित कर दिया जाता
अभी कल पैदा हुआ आदमी
धीरे धीरे दिमाग में दाखि़ल होता वह
फैशन से बाहर हो चुके फर्नीचर की तरह
घर के अन्धेरे कोने में ढकेल दिए जाते बुजुर्ग
रिश्ते-नाते भाईचारे परोपकार के भाव
पुरानी किताबों के साथ गठरी में बाँध
अटाले में फेंक दिए जाते
रद्दी में बिग जाती नैतिकता
ईमानदारी पड़ी पड़ी जंग खा जाती
सारी सच्चाई दीमकें चाट जाती
फैशनपरस्त लोगों की शह पर
अपनी सत्ता स्थापित करता हुआ
जनता की ग्लानि में
शोर-शराबे के साथ प्रवेश करता वह
अपने गुलामों के जे़हन में
चमकता हुआ झूठा अभिमान भर कर
अपने दस्तख़त से बाँटता
उनके आधुनिक होने का प्रमाणपत्र
इन दिनों सफल व्यवस्थापक है वह
उत्तर आधुनिक बाज़ार का
शस्त्र है मुनाफ़ाख़ोरों का
गारंटी जैसे शब्दों के अर्थ ध्वस्त करता हुआ
परम्परा गौरव संस्कृति जैसे लुभावने शब्दों का तिलिस्म रचाकर
सामर्थ्य और क्षमता जैसे शब्दों के हौसले पस्त करता हुआ
सबसे बड़ा नियामक है वह इन दिनों संसार का
उसका पहला हमला टिकाऊ पर है
दूसरा आक्रमण सस्ते पर
सुन्दर को अपने शिकंजे में कसकर
वह तंत्र की नई परिभाषा गढ़ रहा है
अंतिम प्रहार होगा उसका मनुष्यकी अस्मिता पर
सावधान!!
अभी वह मन पढ़ रहा है।
-2002