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नबी की स्तुति / रसलीन

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1.
नूर इलाह तें अव्वल नूर मुहम्मद को प्रगट्यो सुभ आई।
पाछेँ भये तिहुँलोक जहाँ लग ऊसब सृष्टि जो दृष्टि दिखाई।
आदि दलील को अंत की है रसलीन जो बात भई पुनि पाई।
तौ लौं न पावै इलाही कों कैसेहुँ जौ लौं मुहम्मद में न समाई॥2॥

2.

जीभ चखै तुव नाम को अमृत औरन नाम को पावत फीको।
खाटी मही कहि क्यों मुख भावत जाको गयो पन खात है घी को।
चाह्यो न आज लौं काहू सो काज की आवत लाज यहै नित जी को।
तौ बिनती करि औरन पास कहाइके आप गुलाम नबी को॥3॥

3.

जानत अंतर की गति को तुम याही तें मुख से न बकौं।
कबहूँ न छोड़त घेरो जो पाप कै राह तें मो मन के रब कौं।
आज कृपा करि आन छुड़ाइए राखि दया अपने कब कौं।
जग जानत है एहि बात को होत है दास की लाज तो साहब कौं॥4॥