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मध्या को मान / रसलीन

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केते दिन भए मोहें तोहें समझावत हीं,
मानत न कैसेहुँ बात यों ही भुरावई।
रसलीन पीतम से एती लाज है भली न,
कौन जाने कोऊ कहा पी के जिय आवई।
तू है चंद्रमुखी रीति चंद कै निहारि सोचि,
समुझि विचारि के हिये मैं क्यों न लावई।
तनक तनक परत निस को निसार एक
पाख ही मैं पूरन बदन दरसावई॥30॥

उत्तर

तैं जौ है कहत से हौं नीके करि जानति हौं,
सकुच कहाहि तासों आपनो जो कंत है।
पै हौं एक बात तोसों पूछति हौं मेरी आली,
जो ही कछू आन बसे मेरे चित अंत है।
चंदमुखी मोहैं नित बोलै रसलीन लाल,
तू हूँ साखि देके कही प्यारी यह तंत है।
चंद के लाज में रहे ते जोति बाढ़त है,
पूरन दरस दीन्हें पावत घटंत है॥31॥