Last modified on 22 जुलाई 2016, at 23:04

विश्रब्ध नवोढ़ा बरनन / रसलीन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 22 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

औचक ही आइ बाल नैनन निहारि लाल
बैठि गई तेही काल आपकौ छिपाइ के।
चंचल चितौन चुभै हरि रसलीन (करि),
गौन करि करै केलि भौन मुरझाइ के।
ताहि छन पीह पास आड़ आड़ सखियन,
आवन बताके यों रही है छबि छाइ के।
बधिक ज्यों चोट कै दुरति फिरै ओट ओट,
मृग लोट पोट भए खोजहि लुटाइ के॥28॥