Last modified on 23 जुलाई 2016, at 00:00

दूती मनाइबो मानिनी / रसलीन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:00, 23 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसलीन |अनुवादक= |संग्रह=फुटकल कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1.

बदन है चंद त्योंही राहु बार दीखियत,
नैंन मृग पालव अधर तहाँ आहिए।
नासा कीर ढिग रसलीन दंत दारिमी हैं,
मोर ग्रीव रोमराजी नीके ही सराहिए।
कटि सिंघ गज गति ही ते पेखि परगट,
याते यह बात हिए आनि अवगाहिए।
ऐते सब सत्रु तुव तन आनि मित्र भए,
तो को निज मित्र संग सत्रुता न चाहिए॥61॥


2.

तन गत बात भई एतो कोऊ तन गत,
तेरे तन गति देखे मन को डिढ़ाइए।
कब की मनावति हौं मानति न मेरो कहौ,
बारे ही जो बार-बार सक लौं बढ़ाइए।
आये रसलीन लाल पूजी तेरी साध बाल।
बृथा मान ठानि बाल हठ न पढ़ाइए।
जैसे आँसुबन सिव कुच जलसाई कीनें,
तैसे हँसि हँसि अब फूलन चढ़ाइए॥62॥