देखी मैं एक अनूपम बाल तियान के जाल में जात सनीनों।
सोने सी देह दिपै रसलीन लगै मुख देखत चंद मलीनों।
सोभा के भार लचै कटि छीन खुल्यो अलि सीस ते पाट नवीनों।
घूँघट ओट के छूटतहीं दृगचोट चलाइ के लूट सी लीनों॥83॥
देखी मैं एक अनूपम बाल तियान के जाल में जात सनीनों।
सोने सी देह दिपै रसलीन लगै मुख देखत चंद मलीनों।
सोभा के भार लचै कटि छीन खुल्यो अलि सीस ते पाट नवीनों।
घूँघट ओट के छूटतहीं दृगचोट चलाइ के लूट सी लीनों॥83॥