कैसहुँ बहू अछवानी न पीवत केतो खरी ढिग सास निहोरै।
हाथ लिये चमचा झिझकै मुख लावत ओंठ औ नाक सिकौरै।
सोंठ लगी गरवैं तबहीं भरि नैनन मैं अँसुवा मुख मोरै।
एरी लखो एहिं रूप सुहावन नारिन को मन कों यह चोरै॥93॥
कैसहुँ बहू अछवानी न पीवत केतो खरी ढिग सास निहोरै।
हाथ लिये चमचा झिझकै मुख लावत ओंठ औ नाक सिकौरै।
सोंठ लगी गरवैं तबहीं भरि नैनन मैं अँसुवा मुख मोरै।
एरी लखो एहिं रूप सुहावन नारिन को मन कों यह चोरै॥93॥