आरती श्रीअञ्जनीकुञ्मारजी
आरति श्रीअञ्जनिकुञ्मारकी।
शिवस्वरूञ्प मारुतनन्दन, केञ्सरी-सुअन कलियुग-कुञ्ठार की॥
हियमें राम-सीय नित राखत, मुखसों राम-नाम-गुण भाखत,।
सुमधुर भक्ति-प्रेम-रस चाखत, मङङ्गलकर मङङ्गलाकार की।
॥-आरति०॥
विस्मृत-बल-पौरुष, अतुलित बल, दहन दनुज-वन-हित, दावानल,।
ज्ञानि-मुकुञ्ट-मणि, पूर्ण गण सकल, मञ्जु भूमि शुभ सदाचार की।
॥-आरति०॥
मन-इन्द्रिय-विजयी, विशाल मति, कलानिधान, निपुण गायक अति,।
छन्द-व्याकरण-शास्त्र अमित गति, रामभक्त अतिशय उदार की।
॥-आरति०॥
पावन परम सुभक्ति-प्रदायक, शरणागतको सब सुख-दायक,।
विजयी वानर-सेना-नायक, सुगति-पोतके कर्णधार की।
॥-आरति०॥