(राग सोरठ-ताल त्रिताल)
जय अष्टदशभुजाधारिणी प्रति कर प्रहरणधारिणि जय।
जय सर्वान्ग-आभरणधारिणि सुन्दर त्रिनयनधारिणि जय॥
जय सुविशाल सिंह-आरोहिणि राक्षसदल-संहारिणि जय।
जय भीषण भवभीति-निवारिणि निज-जन-संकटहारिणि जय॥
जय दुर्गे मोहार्णवतारिणि परम सुमंगलकारिणि जय॥