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ऊंदहि / मुकेश तिलोकाणी

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जीअं जीअं
पना उथलाईं वेठो
तीअं तीअं
उथलाए ॾिसु पाण खे।
तेज़ नज़र सां पढु/
पाण खे।
वक़्तु कीअं थो करीं तबाह।
वरी ॿ लुड़िक ॻाड़े
मुंहुं धोई,
माज़ीअ खे भुलिजी
हाल जे चक्कर में
घाणो चीरींदे
ॻाड़ींदो रहिजु पसीनो
वक़्त बि वक़्त
पना उथलाईंदो रहिजि
जेसिताईं थिए न
ऊंदहि।