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अपना चेहरा / योगेंद्र कृष्णा

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सड़कों के हाशिये पर

भागती-हांफती भीड़ में

पल भर के लिए

एक चेहरा

ऐसा भी दिखा था

जो बहुत अपना-सा लगा था

बदहवास-सी भागती

जिंदगी की भीड़ में

एक अजनबी चेहरा

ऐसा भी दिखा था

जो कुछ सपना-सा लगा था

वर्षों बाद

जब समय की करबटों ने

बदल दिए

सड़कों के हाशिये

जब बदल गए

सड़क और आसमान के फासले

और चेहरों की सलवटों ने

सुविधा से गढ़ लिए

रिश्तों के नए प्रतिमान

तब

आज मुद्दतों बाद

पता चला

वह चेहरा

वह सपना

दोनों अपना ही था