Last modified on 17 फ़रवरी 2017, at 11:05

सोच / ब्रजेश कृष्ण

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:05, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सोचूँ तो बहुत कुछ है
सोचने को मेरे पास
मसलन यह कि
बहसें और गपशप करते दोस्तों
के जाने के बाद
क्या बचता है मेरे पास?

मसलन यह कि
ठीक सामने की दीवार पर
कीड़ा खाती हुई छिपकली
मुझसे इतनी निडर
कब और कैसे हो गयी?

मसलन यह भी कि
कूड़े के ढेर से अपनी
आँखें बीनती वह छै बरस की लड़की
क्या सोचती है मेरी बेटी के बारे में?

सोचूँ तो सचमुच बहुत कुछ है
सोचने को मेरे पास
मसलन यही कि
दोस्तों की गपशप
कीड़ा खाती छिपकली
और आँखें बीनती लड़की में
आखि़र क्या सम्बन्ध है?