Last modified on 17 फ़रवरी 2017, at 11:08

डायरी से एक पन्ना / ब्रजेश कृष्ण

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:08, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज बैंक से लौटते हुए
रास्ते में मिली एक पहचान की स्त्री
वह अपने घुटनों के दर्द से
इतनी परेशान थी कि रो पड़ी मेरे सामने
मगर मैं दुखी नहीं हुआ उसकी तकलीफ़ से
क्योंकि मेरी जेब भरी थी
और मुझे जल्दी थी घर लौटने की

आज जहाँ खड़े होकर विरोध करना था मुझे
वहीं साथ ली मैंने एक समझदार चुप्पी
खु़द से यह कहते हुए कि हर ग़लत काम को
ठीक करने का ठेका अकेले मेरे पास नहीं है

आज मैंने पूरे शहर को पार किया
और कुछ नहीं देखा
मगर टीवी में देखी एक करुण-कथा
बेचैनी मुझे होने को थी कि मैंने चैनल बदल लिया

आज देखी मैंने अपनी तस्वीर
और खु़द से डरा
आज मैं अपने ही सामने
थोड़ा-सा मरा।