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नये प्रयोग / ब्रजेश कृष्ण

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उस समय: यानी जब मैं बच्चा था
बोलने के अवसर कम थे
और झूठ बोलने के तो और भी कम

जब कभी ऐसा अवसर आता भी था
तो पकड़े जाने का डर
कई दिनों तक पीछा करता था

कभी-कभी तो बोलते समय ही
ज़बान लड़खड़ा जाती थी
और तमाम कोशिशों के बावजूद
आँखें उगल देती थीं भीतर का सच

इस समय: यानी जब मैं पिता हूँ
बोलने के अवसर बहुत हैं
और झूठ बोलने के तो और भी बहुत

ध्यान से सुनो लोगांे को
मोबाइल फ़ोन पर बात करते हुए

तुम पाओगे कि इस कला-विरुद्ध समय में भी
बहुत तेज़ी से हो रहा है एक नई कला का विकास

गांधी की किताब
‘सत्य के प्रयोग’ को मत ढूँढ़िए जनाब
हम अपने समय में हैं:
हमें झूठ के प्रयोग करने दीजिए।